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Kedarnath Temple History In Hindi | इतिहास | स्थापना

Kedarnath Temple History In Hindi : तो दोस्तों आज हम जानेंगे केदारनाथ मंदिर के बारे में इसका इतिहास, स्थापना और निर्माण कैसे हुआ तो चलिए शुरू करते हे 

भारत के उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर है, जो बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। मंदिर में स्थित स्वयंभू ( स्वयं उत्पन्न होने वाला ) शिवलिंग अति प्राचीन हैं। भगवान शिव का ज्योति रूपी स्वरूप ही ज्योतिर्लिंग कहलाता है, जो अनंत है ( जिसका आरम्भ और अंत स्वयं ब्रह्मा और विष्णु भी नहीं ढूंढ पाए थे) | कहा जाता है की इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापो से मुक्ति मिल जाती है| यह मंदिर करोडो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहाँ वातावरण मनोहर और आनंदित रहता है | यहाँ का द्रुश्य देखकर हृदय आनंद विभोर हो उठता हैं और परम आनंद की अनुभूति प्राप्त करता है | लोग इस जगह के सौंदर्य और वातावरण को देख के कहते है की यहाँ पर हवा सीधे स्वर्ग से आती है | केदारनाथ तीर्थ कला का उत्तम नमूना हैं। 

Kedarnath Mandir Kaha Par Hai

उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनों दर्शन तीर्थो की बड़ी महिमा है | इस दोनों तीर्थ का माहात्म्य एक दूजे जुड़ा हुआ है, क्योकि ऐसा कहा जाता है की अगर आपको बद्रीनाथ धाम की यात्रा करनी है तो आपको पहले केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने पड़ते है, अगर आप ऐसा नही करते ही तो आपकी यात्रा सफल नहीं कहलाती है | केदारनाथ तीर्थ बहुत ही प्राचीन है | यह कितना पुराना है इसका कोई स्पस्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है , क्योकि यहाँ लोग हजारो सालो से इस तीर्थ की यात्रा करते है | केदारनाथ मंदिर मन्दाकिनी नदी के पास ही स्थित है, जो की चौरीबारी हिमनंद कुंड से निकलती है | केदारनाथ मंदिर ६ फिट ऊचे पत्थर के चौकोर चबूतरे पर बनाया गया हैं और मंदिर पत्थरो से कत्यूरी शैली में निर्माण किया गया है | उस समय में इतनी ऊंचाई पर कैसे मंदिर का निर्माण हुआ होगा , ये भी सोचने वाली बात है | केदारनाथ मंदिर की तीन ओर पहाड़ है | एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड |  मंदिर के सामने की ओर तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। भवन के दक्षिण की ओर मंदिर की दक्षिण की और रहते है | मंदिर के पीछे के भाग में जल के कुंड है, जहा भक्त गण आचमन और तर्पण करते है | मंदिर से थोड़ी ही दुरी पर आदि गुरु शंकराचार्य की समाधी है, वहा पर भी भक्त दर्शन करके पावन होते है | 
    
केदारनाथ मंदिर का गर्भगृह अति प्राचीन है जिसे ८० वीं शताब्दी का माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग बैल के कूबड़नुमा आकृति में स्थापित हैं, जो स्वयंभू है | बाहर प्रांगण में नन्दी महाराज बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह और मंडप की चारो और प्रदक्षिणा पथ है | शिवलिंग के इस प्रकार से त्रिकोणात्मक बैल के पीठ स्वरुप के संरचना के पीछे एक महाभारत कालीन प्रेरक प्रसंग भी हैं।

 पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के कहने पर पांडवोने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना की थी जिसके बाद इस अति भव्य मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था | भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था | हिमालय में स्थित होने के कारण केदारनाथ मंदिर दर्शन के लिए पुरे साल के लिए खुला नहीं रहता । यह मंदिर में दर्शन का समय भारतीय ऋतुओ  के अनुसार अप्रैल से नवम्बर के मध्य में ही खुलता है | शीतकाल में केदारनाथ घाटी बर्फ से पूरी ढंक जाती है। केदारनाथ-मन्दिर के खोलने और बन्द करने का ऊखीमठ में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारियों द्वारा मुहूर्त निकाला जाता है | भगवान शिव की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं। 

केदारनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की कथा को हम संक्षेप में जानते है | कहा जाता है की भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि दोनों हिमालय के केदार श्रृंग तपस्या कर रहे थे | नर और नारायण ऋषि की भक्ति-आराधना से भगवान शिव प्रकट होते है और उनको दर्शन देते है | फिर उनकी प्रार्थना सुनकर उनको ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान प्रदान करते है | यह स्थल केदारनाथ हिमालय पर्वत के केदार नामक श्रृंग पर है | 

Kedarnath Mandir Ka Itihas

पंचकेदार की कथा महाभारत काल से जुडी हुई है | महाभारत के युद्ध में कौरवो को हराकर पांडवो ने विजय हासिल की | उसके बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से  मुक्ति पाने के लिए वो भगवान शिव का दर्शन करना चाहते थे | लेकिन भगवान शिव उनसे रूठे हुए थे | जब पांडव भगवान शिव के दर्शन हेतु काशी गए,पर भगवान उन्हें वहा नहीं मिले | फिर पांडव भगवान को ढूंढने के लिए हिमालय पर्वत पर पहुँचते है, लेकिन भगवान उनसे रूठे हुए थे, जिसके कारन वो उनको दर्शन नहीं देना चाहते थे, इस लिए वो वहा से भी अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा कर बसे | पांडव भी अपने निर्णय पर अडग थे, वो भगवान शिव के पीछे पीछे केदार आ गए | पांडव उनको पहचान न सके इसलिए भगवान शिव ने बेल का रूप धारण कर लिया और पशुओ के झुंड में मिल गए | तभी पांडवो को संदेह हो गया | फिर भीमसेन ने विशाल स्वरूप को धारण कर अपने पैरो को दो पहाड़ो पर फैला दिए | तब गाय-बैल और आदि पशु तो भीमसेन के पैरो के नीचे से निकल गए, लेकिन भगवान भोलेनाथ जो बैल के स्वरूप में थे उनको भीमसेन के पैरो के नीचे से नहीं निकलना अनुचित लगा | वो बैल धीरे धीरे भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा , तभी भीमसेन ने उस बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया | भगवान भोलेनाथ पांडवो की अतूट श्रद्धा, भक्ति और संकल्प को देख कर प्रसन्न हो गए | फिर भगवान शिव ने उनको दर्शन देकर भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति दी और उनके पापो से उनको मुक्त किया | तब से लेकर आज तक भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के स्वरूप में श्री केदारनाथ में बिराजमान हैं | और भक्त गण उनकी पूजा अर्चना करते है | ऐसा माना जाता है कि बैल के स्वरूप में से भगवान शिव जब अंतर्ध्यान हो गए, तो उनका धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू में प्रकट हुआ उनकी भुजाएं तुंगनाथ में, उनका मुख रुद्रनाथ में, उनकी नाभि मद्महेश्वर में और उनकी जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए | काठमांड अब वहां भगवान पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है | केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर और कल्पेश्वर को पंचकेदार कहा जाता है | आज इन सभी जगहों पर भगवन शिव के भव्यातिभव्य मंदिर बने हुए है | 


केदारनाथ में  पांच ‍नदियों का संगम भी है | जिसमे  मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नामक नदियो का समावेश होता है | इन नदियों में से कुछ नदियों का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन इन पांच नदियों में से अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी नदी के किनारे है बसा है केदारनाथ धाम। 

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